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गांव सुरसुरा म्हाही ने, सत्य री राखी आण।बासक वचन निभावणा आ तेजा री पिछाण।।
वीर तेजाजी महाराज का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में ताहड़ जाट और राजकुंवर के घर खरनाल गांव में हुआ. यह राजस्थान के 6 चमत्कारिक सिद्धों में से एक है. तेजाजी सबसे बड़े गौ रक्षक माने गए हैं. यहां तक कि गायों की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की बलि तक दे दी थी. तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ में बसे थे. तेजाजी का विवाह पेमलदे से हुआ. साथ ही उनके पास एक घोड़ी भी थी जिसे लीलण के नाम से जाना जाता था.लोक कथाओं के अनुसार सुरसुरा में सर्पदंश के कारण लोकदेवता तेजाजी महाराज की मृत्यु हुई थी. सरसुरा भारतीय राज्य राजस्थान के अजमेर जिले की किशनगढ़ तहसील का एक गाँव है। यह रुपनगढ़ कस्बे से 8 किलोमीटर दक्षिण में पर्बतसर-किशनगढ़ मार्ग पर स्थित है। यह वो स्थान है जहाँ पर 28 अगस्त 1103 को जाटों के लोक-देवता तेजाजी का साँप के काटने से निधन हुआ। उस समय वो दुश्मनों से लड़कर वापस लौट रहे थे। यहीं पर तेजाजी का एक भव्य मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि तेजाजी महाराज बचपन से ही बहादुर थे. एक बार की बात है जब तेजा महाराज अपनी बहन को लेने उसके ससुराल पहुंचे तो पता चला कि दस्यु गिरोह उनकी बहन की सारी गायों को लूटकर ले गए. जिसके बाद तेजाजी महाराज अपने एक साथी के साथ जंगलों में बहन की गायों को छुड़ाने के लिए चल पड़े.इस दौरान बीच रास्ते में एक सांप तेजाजी महाराज के घोड़े के सामने आ गया और उन्हें डसने का कोशिश करता है. लेकिन तेजाजी महाराज उस सांप को वचन दे देते है कि पहले वो अपनी बहन की गायों को छुड़ाकर वापस लाएंगे. फिर सांप उन्हें डस ले. तेजाजी का वचन सुन कर सांप उनके रास्ते से हट जाता है.जिसके बाद दस्यु गिरोह से लोहा लेते हुए तेजाजी अपनी बहन की गायों को छुड़ाने में सफल हो जाते हैं. लेकिन दस्यु गिरोह के प्रहार से तेजाजी महाराज बुरी तरह घायल हो जाते हैं. लिहाजा ऐसे में जब तेजाजी अपना वचन पूरा करते हुए सांप के पास पहुंचते है तो सांप खून से सना हुआ देखकर उनसे कहता है कि आपका शरीर तो पूरी तरह से अपवित्र हो गया. मैं डंक कहां मारू. जिसके बाद लोकदेवता तेजाजी महाराज अपना वचन पूरा करने के लिए सांप को डसने के लिए अपनी जीभ आगे कर देते है. तेजाजी की प्रतिबद्धता को देख नागदेव उन्हें आश्रीवाद देते है कि कोई व्यक्ति सर्पदंश (सांप के डसने से) पीड़ित तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा तो उस पर जहर का असर नहीं होगा. इसी प्रचलित मान्यता के चलते हर साल भाद्रपद शुक्ल की दशमी को तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है
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