महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक उथल पुथल के बीच एक बार फिर से दल बदल कानून की चर्चा हो रही है। क्या है ये कानून कब और किन परिस्थितियों में इसे लाया गया, इसपर आज मुद्दा आपका में चर्चा करेंगे। दरअसल 1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों के इधर-उधर जाने से कई राज्यों की सरकारें गिर गईं। ऐसा बार-बार होने से रोकने के लिए दल-बदल कानून लाया गया। संसद ने 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची में इसे जगह दी। दल-बदल कानून के जरिए उन विधायकों/सांसदों को सजा दी जाती है जो एक पार्टी छोड़कर दूसरे में जाते हैं। इसमें सांसदों/विधायकों के समूह को दल-बदल की सजा के दायरे में आए बिना दूसरे दल में शामिल होने (विलय) की इजाजत है। यह कानून उन राजनीतिक दलों को सजा देने में अक्षम है जो विधायकों/सांसदों को पार्टी बदलने के लिए उकसाते हैं या मंजूर करते हैं। दल-बदल कब होता है। कौन तय करता है। कानून के तहत तीन स्थितियां हैं। इनमें से किसी भी स्थिति में कानून का उल्लंघन सदस्य को भारी पड़ सकता है। विधायिका के पीठासीन अधिकारी (स्पीकर, चेयरमैन) ऐसे मामलों में फैसला करते हैं।
Guest:
1. Desh Deepak Verma, Former Secretary General, Rajya Sabha
2-Chakshu Roy, Head of Outreach, PRS
3-Ramkripal Singh, Senior Journalist
Anchor: Preeti Singh
Producer:- Pardeep Kumar
Assistant Producer:- Surender Sharma
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