बिरजू महाराज, भारतीय नृत्य की ‘कथक’ शैली के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका-बिंदादीन’ घराने के मुख्य प्रतिनिधि थे।
ताल और घुँघुरूओं के तालमेल के साथ कथक नृत्य पेश करना एक आम बात है, लेकिन जब ताल की थापों और घुँघुरूओं की रूंझन को महारास के माधुर्य में तब्दील करने की बात हो तो बिरजू महाराज के अतिरिक्त और कोई नाम ध्यान में नहीं आता
बिरजू महाराज केवल नौ वर्ष के थे जब उनके सर से पिता का साया उठ गया ,
भरणपोषण और कला को जीवित रखने के लिए 14 बर्ष की उम्र में उन्हें मंडी हाउस दिल्ली के कथक केंद्र में उन्होंने नौकरी कर ली,
उनके अंदर के कलाकार को गति मिली कोलकाता के मनमतुनाथ घोष के यहां जहां देशमर के कलाकारों का जमावड़ा लगता था, यहां पर किए गए नृत्य ने बृज मोहन मिश्र को बिरजू महाराज बना दिया|
इसके बाद तो,बिरजू महाराज का सारा जीवन ही इस कला को क्लासिक की ऊँचाइयों तक ले जाने में ही व्यतीत हुआ
उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ और ‘कालीदास सम्मान’ समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया साथ ही उन्हें ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ और ‘खैरागढ़ विश्वविद्यालय’ से ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि भी प्रदान की गई ।
16 जनवरी 2022 को बिरजू महाराज के पैरों की थाप, शरीर की थिरकन और घुंघरुओं की झनकार थम गई, शास्त्रीय नृत्य, गीत और संगीत को नयी ऊंचाई देने वाला कलाकार खामोश हो गया लेकिन अपनी कला और अपने नाम को अमर कर गए..
नवभारत निर्माता
बिरजू महाराज
प्रोड्यूसर: प्रतिबिम्ब शर्मा
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